3. देउरी लोक-संस्कृति : एक अवलोकन(आलेख) ✍ जुन देउरी

देउरी असम की अन्यतम प्रधान जनजाति है । इस जनजाति के लोग प्रमुखत: असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में निवास करते हैं । प्राचीनकाल में इस जनजाति के लोग शदिया में निवास करते थे, परन्तु अब वे पूर्वोत्तर-क्षेत्र के कोने-कोने में रहने लगे हैं ।  

ऐसा माना जाता है कि ‘देउरी’ शब्द की उत्पत्ति मूलतः ‘देव’ नाम से हुई है । इस जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में एक लोक-कथा प्रचलित है । इस कथा के अनुसार एक समय महामाया ताम्रेश्वरी गोसाँनी अपनी माया से शक्ति का प्रकाश करके सारे जगत के कल्याण हेतु पत्थर बनकर दिबांङ नदी में स्थापित हुई थीं । इसको देखकर भीष्मक राजा ने लोगों को महामाया के पत्थर-रूपी दिव्य मूर्ति को अन्य स्थान पर स्थापित करने का आदेश दिया । परन्तु, मूर्ति को उस स्थान से अन्य स्थान पर कोई नहीं ले जा पाया । इसीलिए निराश होकर राजा ने घोषणा की कि उस मूर्ति को जो अन्य जगह पर स्थापित कर पाएगा, वह उनका राजपुरोहित बनकर विख्यात बूढ़ा-बूढ़ी, बलिया बाबा और ताम्रेश्वरी मन्दिर का पुजारी होगा । इस घोषणा के प्रचार होते ही अनेक जाति-जनजातियों के लोग मूर्ति को उठाने की भरसक चेष्टाएँ करके भी विफल हो गए । परन्तु, उसमें से चुटिया जनजाति के चार व्यक्ति ऐसे रहे, जिन्होंने पवित्र मन से देवी की आराधना की जिससे देवी माँ प्रसन्न हो गयीं और चुटिया जनजाति के उन चार व्यक्तियों ने देवी की मूर्ति को ताम्रेश्वरी मन्दिर में स्थापित किया । उस समय से ही चुटिया जनजाति के उन चार व्यक्तियों को राजपुरोहित की मर्यादा प्राप्त हुई । उन लोगों को तभी से देउरी कहा जाने लगा और माना जाता है कि इस महाशक्ति की उपासना करने वाले लोग ही देउरी कहलाते हैं ।

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