बाघजान
(बाघजान की करुण स्मृति में)
चल, कोई बात नहीं, जो हुआ सो हुआ,
अगली बार फिर जनम लेंगे, मनुष्य बनकर
जियेंगे एक सुखभरी जिंदगी-
होगा एक छोटा सा घर, छोटी सी फुलवारी
हरे भरे खेत-खलिहान ।
इसबार तो चल, जो हुआ सो हुआ-
आ…हम दोनों मिलकर
इस जली हुई राख से ही
सजा लेते हैं चिता अपनी,
चल कोई बात नहीं,
इस बार जो हुआ सो हुआ ।