11. करबी देवी की कविताएँ

        बाघजान

      (बाघजान की करुण स्मृति में)

चल, कोई बात नहीं, जो हुआ सो हुआ,

अगली बार फिर जनम लेंगे, मनुष्य बनकर

जियेंगे एक सुखभरी जिंदगी-

होगा एक छोटा सा घर, छोटी सी फुलवारी

हरे भरे खेत-खलिहान ।

इसबार तो चल, जो हुआ सो हुआ-

आ…हम दोनों मिलकर

इस जली हुई राख से ही

सजा लेते हैं चिता अपनी,

चल कोई बात नहीं,

इस बार जो हुआ सो हुआ ।

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