अनार का हिस्सा
तू था या मैं ?
जिसने काँपते दूसरे को धीरे से जगाया था ?
इस ख़्वाब में कि रूह पर दौड़ते सवाल
और पीठ पर चलती गीलीं गुज़ारिशें
आधे-अधूरे तुक्के और अनक ही सिफ़ारिशें
हमारी सुकून की नींद को तोड़ने की हिम्मत तो करें
कहीं रात की सादगी को गुदगुदाती हुई मक़बूल पंछी
इशारा करने लगी कि दिन की लालिमा अब दूर नहीं
जैसे टपकता रस, और इस बीच
खर्राटे लेते पेड़ों के बीच में से उगा अनार का एक छोटा हिस्सा
पर वह तू था या मैं ?
जिसने हमारी जलती आँखों में उसको सबसे पहले देखा ?
Dr. Rita Moni Baishya




