8. आखिरी लिबास(कहानी) ✍ ममता कालिया

हम लेखकों की मस्ती और पस्ती, खब्त और खामखयाली के क्या कहने ! बैंक का खाता कितना भी खुश्क हो, दिल-दिमाग में पड़े कहानी-कविता के खाके अपना असली खज़ाना लगते हैं, उसी पर अपना दम-खम है । कभी-कभी कोई छोटा-मोटा इनाम पा जाते हैं । जब से कोरोना ने हमें घर में कैद किया है, इनाम देने वाले दरियादिल हो गए हैं । रोज़ ही लेखकों के किसी न किसी जत्थे को इनाम घोषित होता है । आयोजक आपको ऑनलाइन सम्मानित कर देता है, ऑनलाइन प्रशस्ति-पत्र भेज देता है, घंटे भर का लाइव शो करवा लेता है और किसी की कोई भागदौड़ नहीं होती, लेखक की माथापच्ची के बारे में सोचने की किसे पड़ी है । वह तो वैसे भी निठल्ला है । क्या हुआ अगर खाट की जगह घंटा भर कुरसी पर बैठकर बोल-वोल दिया ।

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