दो-एक पुराने किस्म की घोड़ा-गाड़ी, दो-एक नई-पुरानी मोटर गाड़ी, दो-चार श्रांत भारवाही कुली इन सबके अनिश्चित समन्वय में रेल स्टेशन के पास स्थित गुवाहाटी-शिलांग मोटर स्टेशन गरज उठा है। वहाँ सारे काम धीरे-धीरे एक बिजली संचालित भारी घड़ी की तरह चलते हैं। देखने से लगता है मानो घड़ी बंद पड़ गई हो, लेकिन कुछ देर तक स्थिर नजरों से देखते रहने से पता चलता है कि मिनट का काँटा कूदकर उसके एक मिनट बैठे रहने के बाद जीवन का पूर्ण आभास देता है। ठीक उसीतरह स्टेशन के सभी काम समयानुसार आरंभ होते हैं, पर धीमी गति से।