जब रुकमपुर के लिए मुझे तबादले का ऑर्डर मिला तो मैं बौखला-सा गया था । उस गाँव का नाम सुनते ही बरसों से समेटा मन का साहस और उत्साह डोलने लगा था । धूल-धूसरित रास्ता और चार मील कच्चे की चलाई । कहाँ अभी जहाँ रहता था, ठीक सड़क के किनारे था मेरा बैठक, जीप सीधी आकर दरवाजे पर खड़ी हो जाती थी, बस…सौ गज की दूरी पर ही रुकती थी । इस गाँव में मैंने बड़ा मन लगाकर काम किया था, शायद इसी का इनाम दे दिया मुझे ।
“मिस्टर विशालनाथ, यू आर ट्रांसफर्ड टू दैट लोनली विलेज । यू सी डेवलपमेंट इस मस्ट फॉर ऑल विलेजेज ।” अंग्रेजी के इस वाक्य के समक्ष मैं कुछ भी नहीं बोल पाया था । हाथ में वह ट्रांसफर ऑर्डर पसीजता रहा और “यस सर” कहकर मैं बाहर निकल आया था । जैसे ही अपने बॉस मिस्टर बर्नाड के कमरे में घुसा, मेरा चेहरा देखते ही ऊपर कहा वाक्य उन्होंने मेरी ओर यूँ उछाल दिया कि मेरी जुबान कुछ कहने को उठ ही नहीं पाई ।