Posted in Fourth Issue: Year: 3, Issue: 4; January-June, 2022

इस अंक में(এই শিতানত)

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1. अकेले की मुक्ति संभव नहीं(आलेख) ✍ मधु कांकरिया

जब जब स्त्री मुक्ति की बात आती है, जेहन में कई स्त्रियाँ कौंध जाती है। खेत खलिहान में काम करती स्त्री,पीठ पर बच्चा, हाथ में…

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2. उपन्यास की प्राणधारा(आलेख) ✍ भरत प्रसाद

उपन्यास का जन्म ही यथार्थ की अभिव्यक्ति की पीड़ा से हुआ है। यथार्थवाद, आधुनिकता और उपन्यास एक दूसरे से आत्मवत् जुड़े हुए हैं । इसीलिए…

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3. मेच्चु(आलेख) ✍ जुन देउरी

असमीया  समाज में मनाये जानेवाले जातीय उत्सव ‘बिहु’ को देउरी संप्रदाय में ‘मेच्चु’ या ‘बिचु’ कहते हैं। बिहु  नाम सुनते ही मन एक अलग ही…

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4. गोवालपरीया लोकगीतों में समाज जीवन का चित्रण(आलेख) ✍ हिमाश्री डेका

साहित्य समाज जीवन का आइना है। मौखिक और लिखित दोनों साहित्य के जरिए  समाज जीवन का नान्दनिक रूप अभिव्यक्त होता है । इसीलिए किसी एक…

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5. अदब की दुनिया में ‘तन्हाइयों का रक्स’ (आलेख) ✍ अंशु सारडा ‘अन्वि’

यह अदब की दुनिया है, इस अदब की दुनिया में एक लंबी फेहरिस्त है शायरों, कवियों की। कुछ वाकई सरस्वती के सच्चे साधक होते हैं…

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6. आक्षेप(कहानी) ✍ मैत्रेयी पुष्पा

जब रुकमपुर के लिए मुझे तबादले का ऑर्डर मिला तो मैं बौखला-सा गया था । उस गाँव का नाम सुनते ही बरसों से समेटा मन…

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7. कोलाज : थर्टी फर्स्ट(कहानी) ✍ रीतामणि वैश्य

आफिस से घर वापस आते हुए वह वाइन शॉप से होकर आया। महीने की अंतिम तारीख थी, तंख्वाह आ चुकी थी। उसने वाइन की एक…

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8. अशोक लौट के आता तो(कविता) ✍ राजीव तिवारी

रणभूमि में हताहत लोगों को देखकर फिर किसी राजा का मन द्रवित नहीं होता उसके हृदय में अंतर्निहित  ऋषितत्व प्रबल नहीं होता अपितु, रक्त पिपासा…

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9. पापा(कविता) ✍ रोज़ी मोदक

न झुकते हैं कभी, न झुकने देते हैं। न रोते हैं कभी, न रोने देते हैं। स्वाभिमानी हैं खुद स्वाभिमान हमें भी सिखाते हैं। कठिनाई…

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