डॉ. नारायण चंद्र तालुकदार असम के विशिष्ट हिन्दी-सेवी हैं । वे कॉटन विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष रहे हैं । यह साक्षात्कार डॉ. संजीव मण्डल द्वारा लिया गया है ।
डॉ. संजीव मण्डल :आप हिंदी के प्रति कैसे आकर्षित हुए?
डॉ. नारायण चंद्र तालुकदार : हिंदी के प्रति आकर्षित होना मेरे लिए अस्वाभाविक घटना नहीं थी । मेरे माता-पिता दोनों हिंदी सेवी थे । मेरी माँ स्व. उमारानी तालुकदार बरमा गर्ल्स हाईस्कूल में हिंदी पढ़ाती थी । मेरे पिता बरमा हाईस्कूल में असमीया पढ़ाया करते थे । मेरे पिता स्व. महेंद्र तालुकदार स्वतंत्रता सेनानी थे । गरीब किसान का बेटा गांधी भक्त थे । हिंदी सीखना और सीखाना मेरे माता-पिता का लक्ष्य था । मेरे पिताजी ने बरमा में राष्ट्रभाषा विद्यालय की स्थापना की थी । उन्होंने वर्धा जाकर ‘कोविद’ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी । मेरी माँ चाहती थी कि मैं हिंदी में एम.ए. पास कर सिर्फ कॉटन कॉलेज का अध्यापक बनूं । पर किन्हीं कारणों से मैंने इतिहास में ‘आनर्स’ लेने का निर्णय लिया था । मेरी माँ असंतुष्ट हो गयी और मेरे मना करने पर भी उन्होंने मुझे इतिहास के स्थान पर हिंदी में ‘आनर्स’ लेने का आदेश दे दिया ।