मैंने चार दिन पहले अपनी मासी को खोया। वे छिहत्तर साल की थीं और वृद्धावस्था से सम्बंधित कुछेक बीमारियों से जूझ रही थीं। मासी बचपन से ही मेरे लिये प्रिय थीं और मैं भी उनके लिए उनकी बेटी से कम नहीं थी। बचपन में पापा की डाँट और माँ की मार से बचाने वाली वही थीं। मासी अर्थात माँ जैसी, वे मेरे लिए मेरी माँ से कम नहीं थीं। वे बहुत शर्मीली और स्थिर स्वभाव की थीं। उनका नम्र एवं विनीत स्वभाव ही मुझे हमेशा से उनके प्रति आकर्षित करता था। उन्होंने मुझे हमेशा अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया था और उन्हीं के प्रोत्साहन और सहयोग की वजह से मैं विदेश जाकर पढ़ पाई। मेरे हर एक फ़ैसले में उन्होंने मेरे साथ दिया और मेरे साथ खड़ी रहीं।