निराशा में बहते मन को थामने के लिए उस शाम मैं कोलकाता की सबसे बड़ी किताबों की दूकान ‘न्यू मेंस’ चली गयी । बहुत दिनों से कुछ भी अच्छा पढ़ा नहीं था इसलिये कुछ अच्छा पढ़ने की बेताबी थी, पर जैसे ही अन्दर घुसी आँखें झटका खा गयी- क्या गलत दुकान में घुस गयी ? वहाँ किताबों की बजाय साड़ियाँ टंग रही थी, ‘वाय वन गेट वन’ की कूल कूल दुनिया थी ।